64 सालों कि गुलामी

 चारों तरफ स्वतंत्रता दिवस मनाने कि तैयारियां चल रही हैं,बहुत लंबे और लुभावने वादे देश के नेता कर रहे हैं |व बहुत जगह पैसे को पानी कि तरह इस दिवस के नाम पर बहाय जा रहा है | इससे पहले कि आप भी इस जश्न को मनाने के लिय व्यस्त हो जाए | जरा सोचे कि स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे हैं या परतंत्रता दिवस | क्या आपने कभी ये सोचा कि क्या देश स्वतंत्र है ? स्वंतंत्रता का सीधा सा अर्थ होता है, स्व यानि खुद का और तंत्र यानि शासन | हमारे भारत देश में शासन तो है लेकिन जरा इस बात पर गहनता से विचार करना कि ये शासन हमारा है या पराया | अब बात साफ़ है कि आज इस देश में जो शासन प्रणाली चल रही है वो हमारी नहीं है , देश उसी सिद्धांत पर चल रहा है जैसे अंग्रेज चलाया करते थे बस परिवर्तन इतना ही हुआ कि पहले अंग्रेज शासन करते थे और अब उसी सिद्धांत पर इस देश के वो लोग राज करते हैं जो शरीर से भारतीय हैं लेकिन मानसिकता से अंग्रेजियत भरी पड़ी है | विषय बहुत लंबा है परन्तु मुख्य रूप से बहुत से ऐसे उदाहरण हमारे सामने है जिनको जानकार व समझकर पूरी प्रमाणिकता से कहा जा सकता है कि भारत में आजादी आई नहीं है |हाँ सही मायेने में हम आजाद हुए ही नहीं हैं |
पूरी दुनिया के आजादी के इतिहास कि मैं बात करूँ तो ये इतिहास रहा है कि दुनिया में जो भी देश गुलाम रहकर , आजाद हुआ है उसने आजाद होने के बाद सबसे पहले जो काम किया वो है उस देश ने अपनी शिक्षा व मातृभाषा को अपनाया है | क्योंकि शिक्षा व्यवस्था व भाषा किसी भी देश के विकास में रीढ़ कि हड्डी का कम करती हैं |सोचने समझने कि जो क्षमता मातृभाषा में विकसित होती है वो विदेशी या अन्य भाषा में उतनी नहीं हो पाती है | हमारे सामने अमरीका का उदाहरण सामने है, कि अमरीका ने जो ऊँचाई पाई है | उसके इतिहास का हम जब अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि २०० साल पहले तक उसका इतना ज्यादा कोई अस्तित्व नहीं था |परन्तु 1776  के बाद अमरीका ने जो ऊंचाई पाई है उसका प्रमुख कारण यही रहा है कि उसने आजाद होते ही अपने देश कि भाषा व शिक्षा व्यवस्था को अपनाया | इसी तरह चीन का उदाहरण हमारे सामने है |1949 में चीन में जो सांस्कृतिक क्रांति हुई जिसका नेता माओ था माओ ने जब चीन को बदला तो सबसे पहले उसने देश कि भाषा व शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त किया | इसी तरह जापान, क्यूबा ,स्पेन ,डेनमार्क व कई अन्य देशो का उदाहरण हमारे सामने हैं |
भारत के संदर्भ में देखे तो यहाँ बिलकुल उल्टा चित्र नजर आता है | 1840 में अंग्रेज अफसर मैकाले ने जो शिक्षा व्यवस्था इस देश में भारतीय संस्कृति व सभ्यता को नष्ट करने के लिय व हम सब को मानसिक गुलाम बनाने के लिय बनाई थी वो आज भी इस देश में चलती है | उच्च शिक्षा का जो पाठ्यक्रम अंग्रेजो ने इस में लागू किया था वो लगभग 140 वर्षों से चल रहा है |
और अफ़सोस और दुःख कि बात तो यह है कि मैकाले ने हमारे इतिहास में जो विकृतियाँ डाली थी वो आज भी इस देश कि भावी पीढ़ी को पढाया जाता है |और इससे भी दुःख कि बात यह कि अंग्रेजो इस देश में जो परीक्षा प्रणाली इस देश में लागू करके गए थे वो उनके देश में नहीं चलती है | इसका मतलब सीधा सा यही है कि अगर वो अच्छी ही होती तो वो खुद भी अपनाते |
एक दो और उदाहरणों से बात स्पष्ट होती है कि भारत देश को लूटने और नागरिको पर अत्याचार कने के उदेश्य से अंग्रेज जो कानून बनाकर इस देश में गए थे वही कानून इस देश में चलते है और उनका दुरूपयोग होता | जिसका परिणाम यह कि हमारे देश कि न्यायपालिका सही न्याय नहीं कर पाती है |मात्र फैसला देने में ही वर्षों लग जाते हैं |1857 कि क्रांति होने के बाद जब अंग्रेजो को दर सताने लगा था कि भारतीय नागरिको को यदि काबू में नहीं किया गया तो वे हमारे शासन को जड़े जल्द ही उखाड़ फैकेंगे | भारतीयों कि आवाज को दबाने के लिय अंग्रेजो ने पुलिस बनाकर एक कानून बनया था जिसका नाम था इंडियन पुलिस एक्ट | इस कानून में साफ़ साफ़ लिखा था कि कोई भी अंग्रेज अधिकारी भारतीय नागरिको पर लाठी चार्ज कर सकता है और भारतीयों को यह अधिकार नहीं होगा कि वो इस इस एक्शन ले सकें | और आज 1947 में अंगेजो के जाने के बाद भी भारत देश में यह कानून चलता है और हालात यह हैं कि जब भी किसान , मजदुर , कारीगर या अन्य भारतीय सरकार से शांति पूर्वक अपने हक कि बात को कहने के लिय कोई आंदोलन या जुलुस करते हैं तो आज भी सरकारें इस कानून कि मदद से हमारे देश में हमारे ही नागरिको पर लाठियां बरसवाती  हैं | क्या हक माँगना गुनाह है ? आब आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि असली में आजादी आई है या आज भी भारत परतंत्र है अंग्रेजियत शासन व्यवस्था का |
अंग्रेजो ने भारतियों को लूटने के मकसद से जो टैक्स प्रणाली भारत में चलाई थी वाही आज इस देश में चलती है |इनकम टैक्स , सेल टैक्स , टोलटैक्स, रोड टैक्स इस तरह से लगभग २३ प्रकार के टैक्स इस देश में लगाये थे उनके हालत यह हैं कि आज भारत में 64 प्रकार के टैक्स लगते है और दुःख कि बात यह कि देश के 84 करोड लोग मात्र २० रूपये पर अपनी जिंदगी गुजारते हैं और उनमे से लगभग ८० लाख लोग दो वक्त के खाने को मोहताज हैं|अब आप खुद फैसला किजीय कि भारत में आजादी आई है या 64 सालो कि गुलामी को झेला है |
इस तरह से बहुत से कानून जैसे इंडियन फोरेस्ट एक्ट , इंडियन एक्युजिशन एक्ट(भूमि अधिग्रहण कानून ) व अन्य हैं जो उसी तर्ज पर चलते हैं जैसे अंग्रेज बनाकर गए थे  अब कुछ बात अर्थ व्यवस्था कि करें तो हालत यह हैं कि अंग्रेजो कि लगभग 200 से ज्यादा सालो कि गुलामी सहन करने के बाद भी 1947-48 में जब अंग्रेज इस देश से चले गए थे तब भारत पर १ पैसे का भी कर्ज नहीं था परन्तु आज हालत यह हैं कि भारत का प्रत्येक नागरिक लगभग 18 हजार से भी ज्यादा रूपये का कर्ज दार हो गया है जो कि सरकारे हमसे टैक्स के माध्यम से हर साल वसूलती हैं |
भारत जब 1947 में आजाद हुआ था तब आयत निर्यात का घाटा २ करोड का था आज वही घाटा 17 हजार करोड से भी ज्यादा का हो गया है तो हम कैसे कह दें कि भारत आजाद है |
जो गेहूं देश के नागरिकों को 5 से 6 रूपये किलो मिल जाया करता था वही अनाज आज 18 से २० रूपये किलो मिलता है और देश के किसानो पर कर्ज लगातार बढ़ रहा है तो ये विकास है या विनाश ये फैसला आप खुद कर सकते हैं |

हालाँकि विषय बहुत लंबा है बहुत सी ऐसी और बाते हैं जो ये साबित करती हैं कि भारत के नागरिको पर वही शासन व्यवस्था चलती है जो अंग्रेजो ने बनाई थी बस फर्क इतना से सा है कि पहले गोरे अंग्रेज शासन करते थे और आज काले अंग्रेज करते हैं | देशवासियों अगर आप सच में इस देश को व अपने आप को आजाद करना चाहते हो तो आओ सब मिलकर व्यवस्था परिवर्तन में सहयोग दो और बदल दो इन गुलामी कि मानसिकता व शासन प्रणाली को |एक बात  हमेशा यही याद रखना परिवर्तन करने के लिय समय कि नहीं संकल्प कि आवश्यकता होती है |

Comments

  1. तरुण जी आपका आकलन सही है किन्तु ये परतंत्रता हमारे विचारों की है जो हम दुसरे देश की बातों को अपने देश की संस्कृति से ऊपर रख कर स्वयं पर थोपते हैं .सार्थक पोस्ट .

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  2. यक़ीनन संकल्प की आवश्यकता होती है.... पर आजकल तो हम सिद्धांतों और संकल्पों पर विचार ही नहीं करते...सार्थक पोस्ट

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  3. इस आजादी से तो अंग्रेजो की गुलाम ही अच्छी थी कम से कम उसमे गुलामी का ठप्पा तो था | आज तो आजाद देश के गुलाम है |उस समय एक सिपाही पांच दस गाँव को काबू में रख सकता था लेकिन आज हर गाँव में पुलिस चौकी थाणे वगैरा होने के बाद भी क्राईम नहीं रुक रहे है |

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  4. तरुण भाई, दुखती रग पकड़ ली आपने...वैसे यह अवसर जश्न मनाने का नहीं है, अपनी उन भूलों को सुधारने का है, जो हमने ६४ वर्ष पहले की थीं| यह अवसर यह जान्ने का है कि आंख मूँद कर किसी के पीछे चलना भी एक प्रकार की गुलामी है| जिस प्रकार हमने १९४७ से पहले गांधीजी व नेहरु की गुलामी की| निसंदेह गांधी जी एक महान व्यक्ति थे, मुझे उनकी महानता पर कोई शंका नहीं है| किन्तु इस चक्कर में भारतीयों ने अपने सोचने समझने की शक्ति खो दी, जिसक खामियाजा आज तक भुगतना पड़ रहा है| अब उसी गलती को सुधारने का अवसर है|
    जैसा कि आपने बताया चीन में माओ के विषय में, इसी प्रकार रूस में लेनिन का भी उदाहरण है, अफ्रीका में नेल्सन मंडेला का भी उदाहरण है| किन्तु हमारे यहाँ ये उदाहरण पता नहीं कहाँ खो गए? सही अर्थों में हम आज़ाद नहीं हुए| अभी इसकी लड़ाई जारी है|
    आपकी पोस्ट जगाने वाली है|

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  5. तरुण जी आपके ब्लॉग आवाज़ अपनी को आज हमने ये ब्लॉग अच्छा लगा में लिया है .आपका हमारे ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है-
    आइये स्वतंत्रता दिवस मनाएं ''''अपनी आवाज़'' '' में

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  6. तरुण जि बिलकुल सही फ़रमाया आपने ........सार्थक लेख .

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  7. तरूण भाई आपका आकलन बिल्कुल सत्य है , हम कहने के लिए तो स्वतंत्र हो गये लेकिन वास्तव में अभी भी गुलाम है । अन्तर केवल इतना है कि पहले शोषक गोरे थे , अभी काले है ।
    सुन्दर विचारोत्तेजक सार्थक पोस्ट ...... आभार ।

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